Indian Cinema
सिनेमा जनसंचार मनोरंजन का एक लोकप्रिय माध्यम है। जिस तरह साहित्य समाज का दर्पण होता है उसी तरह सिनेमा भी समाज को प्रतिबिम्बित करता है। दृश्य श्रव्य माध्यम होने के कारण यह लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। सिनेमा मैं कथा होने के कारण यह और अधिक दिलचस्प हो जाता है और दर्शक कहानी का हिस्सा बन जाते हैं। सामाजिक बुराइयों को दूर करने में सिनेमा सक्षम है। दहेज प्रथा, शिक्षा में सुधार, विशेष जरूरतों के बच्चों की शिक्षा, किसी शारीरिक चुनौती का साहस और दृढ़ निश्चय से सामना करना, ग्रामीण भारत में शिक्षा के मुद्दे को उठाना, चिकित्सा संगठनों के भीतर की राजनीति, भारतीय शिक्षा प्रणाली की खामियों को बताना, धार्मिक मान्यताओं का फायदा उठाने वालों के बारे में बताना, ऐसी फिल्मों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
आज भारत में बनाई जाने वाली स्वस्थ व साफ-सुथरी फिल्में सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करने की दिशा में भी कारगर सिद्ध हो रही है।
बदलाव करना बहुत अच्छा है लेकिन अपनी परंपरा और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। फिल्मों में सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दोनों ही होते हैं और हमें सकारात्मकता को ही अपनाना चाहिए।
विवेकानंद ने कहा था-
"संसार की प्रत्येक चीज अच्छी है, पवित्र है और सुंदर है। यदि आपको कुछ बुरा दिखाई देता है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह चीज बुरी है। इसका अर्थ यह है कि आपने उसे सही रोशनी में नहीं देखा।"
अंधकार है वहां जहां आदित्य नहीं,
मुर्दा है वह देश जहां साहित्य नहीं।
साहित्य समाज का दर्पण है
साहित्य सिनेमा को अर्पण है।
सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक सभी मुद्दे उठाता है,
सिनेमा ही हम सब को जागरूक बनाता है।
मनोरंजन करता है ज्ञान भी बढ़ाता है,
एकता अखंडता का संदेश बताता है।
जनमानस के मन को सिनेमा खूब भाता है, छोटो से बड़ों तक अमिट छाप छोड़ जाता है। गीत संगीत नृत्य पोशाक से रूबरू कराता है, सिनेमा के द्वारा समाज में बदलाव आता है।
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